Friday, 12 January 2024

डॉ महेश सिंह यादव

भक्ति साहित्य एवं मानवमूल्य के प्रतीक पुरुष डां. महेश सिंह यादव .

भक्ति साहित्य एवं मानव मूल्य के प्रतीक पुरुष डॉ. महेश सिंह यादव 
                                     ( प्रथम पूण्यतिथि 3 जनवरी )
                                                     डा. सञ्जय कुमार
                          संस्कृत विभाग, डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ,म. प्र.

           देश में जब शिक्षा नीति ,न्यूक्लियर पावर प्लांट और श्वेत क्रांति की शुरुआत हो रही थी, जब देश अपने विकास के विभिन्न संसाधनों की ओर उन्मुख था , उसी विकास पथ पर उल्लसित सस्यश्यामला बड़ागांव -गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश की पवित्र धरा पर एक दिसंबर 1969 ई को डॉ.महेश सिंह यादव का जन्म हुआ था | डॉ.यादव बाल्यकाल से ही बड़े मेधावी और कुशल विद्यार्थी थे |गुरुजनों के प्रति सम्मान की भावना मण्डित थे | प्राथमिक शिक्षा अपने ग्राम के प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त करने के उपरांत आप जनता इंटर कॉलेज दुल्लहपुर से हाईस्कूल तथा श्री महंत रामाश्रय दास इंटरकॉलेज भुड़कूडा -गाजीपुर से इंटरमीडिएट की परीक्षा ससम्मान अंकों के साथ उत्तीर्ण कर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से स्नातक ,स्नातकोत्तर, पीएचडी और बीएड की उपाधि प्राप्त कर 2001 ई. में आर जी एन पी इंटर कॉलेज ,राजा का ताजपुर ,बिजनौर उत्तर प्रदेश में हिंदी विषय के प्रवक्ता नियुक्त हो गए | इसके बाद वही कुछ दिन बाद अपने कर्तव्यनिष्ठा से कार्यवाहक प्रधानाचार्य के दायित्व का निर्वाह भी करने लगे | फलत: कुशल प्रशासकीय क्षमता के कारण उत्तर प्रदेश सरकार के 2023 ई. में श्रीकृष्णा इंटर कॉलेज ,बिजनौर में स्थाई रूप से प्रधानाचार्य के पद को सुशोभित किये थे |       
          यद्यपि प्रारंभ में डॉ. महेश सिंह यादव गणित के अच्छे विद्यार्थी थे लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण इंजीनियरिंग आदि की तरफ नहीं जा सके | गणित आदि विषय के साथ हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति उनमें विशेष रूचि थी |इसलिए अपनी रुचि और मति अनुसार उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में स्नातक कक्षा में नामांकन करा लिया |विश्वविद्यालय के श्रेष्ठ अध्ययन का वातावरण और महनीय व्यक्तित्व को धारण करने वाले ऋषिकल्प शिक्षकों का सानिध्य प्राप्त कर डॉ. महेश सिंह यादव का जीवन अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा |नए जीवन और सुखद भविष्य की ओर बड़ी तेजी से बढे लेकिन पहले से ही दाहिने हाथ से दिव्यांग डॉ.यादव स्नातक तृतीय वर्ष में ही असाध्य रोग ट्यूमर {कैंसर }से ग्रसित हो गए | लेकिन अपनी जिजीविसा और विद्या व्यसन के कारण स्नातकोत्तर हिंदी में पुन:नामांकन करा लिए |आश्चर्यमय उनका साहस था | कभी हार न मानने वाला आत्मबल था| ऐसी विषम स्वास्थ्य की अवस्था में उन्हें अध्ययन की चिंता थी| अद्मय साहस और चुनौतियों से लड़ते रहने की एक अलग दृष्टिकोण को धारण करने वाले डॉ.महेश सिंह यादव स्नातकोत्तर की उपाधि ससम्मान अंकों के साथ प्राप्त किये |धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगा |कई बार ऑपरेशन और विद्युत किरण से सेकाई के द्वारा ईश्वर की कृपा से उस असाध्य रोग पर आप विजय प्राप्त कर लिए| हिंदी भाषा और भक्ति साहित्य में विशेष लगाव होने के कारण आप 'आधुनिक राम काव्य धारा परंपरा और आधुनिकता' विषय पर 1998 ईस्वी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर लिए| जो उस समय पूरे क्षेत्र के लिए गौरव की बात थी| शोध कार्य के दौरान आपको काशी हिंदू विश्वविद्यालय के द्वारा विशेष प्रतिभावान छात्र के रूप में शोध वृद्धि भी प्रदान की गई थी |इसके बाद बीएड स्पेशल का कोर्स भी आपके द्वारा किया गया तत्पश्चात सरकारी सेवा में नियुक्त हुए |अध्यापन उनका पेसा नहीं था बल्कि उनका शौक था |पढाने के लिए उन्हें समय की कोई सीमा नहीं होती थी केवल वे अपना विषय ही नहीं पढ़ाते थे उन्हें विद्यार्थी जो विषय कह देते थे वही पढाने लगते थे |जो विषय उन्हें समझ में नहीं आता था उसे पढ़कर ,सीख कर पढ़ना अपना कर्तव्य समझते थे |उनके अंदर अध्ययन की बहुत रुचि थी| वे भाषा विज्ञान ,पत्रकारिता आदि विषयों में भी स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त किए हुए थे| यूजीसी नेट ,स्लेट आदि परीक्षा भी उत्तीर्ण किए हुए थे |
                     यद्यपि डॉ.महेश सिंह यादव इंटर कॉलेज में अध्यापक थे लेकिन उनका लेखन ,अध्यापन ,उद्बोधन आदि विद्वानों की श्रेणी जैसा था | उच्च संस्थान की भाव गरिमा से आप आलोकित थे| कई बार किसी उच्च संस्थान में पहुंचने के लिए आपने प्रयास भी किया लेकिन सफलता नहीं मिल सकी |परंतु अपने लेखन आदि को निरंतर आप धार देते रहे |उनका मानना था कि मनुष्य का जीवन अध्ययन के लिए मिला हुआ है इसलिए जितना संभव हो उतना अध्ययन करना चाहिए और उसे अध्ययन से जो प्राप्त हो जाय उसी का वितरण लोक अभ्युदय के लिए करना चाहिए|साहित्य के मर्म को समझने वाले डॉ. यादव अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किये थे जिसमें अष्टसई ,हाल-चाल, जीजा जी ,आधुनिक राम काव्य परंपरा ,संत शिरोमणि सुंदर दास एक मूल्यांकन ,ब्रजभाषा तथा भोजपुरी का विकास आदि प्रमुख हैं| हिंदी तथा भारतीय संस्कृति ,जीवन मूल्य, पर्यावरण ,वैश्विक समस्या,वैदिक धर्म दर्शन तथा भक्ति साहित्य पर केंद्रित शताधिक शोध पत्रों का भी प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपके द्वारा कराया गया है | आपका लेखन भक्ति साहित्य और मानव मूल्य की दृष्टी से अलग पहचान रखते हैं | आपके द्वारा अष्टसई लिखि गयी है उसमें आठ सौ हिंदी भाषा में दोहों का प्रणयन किया गया है| जो हिंदी साहित्य में रेखांकित करने योग्य कार्य है| “जीजा जी” अनेक सामाजिक विषयों पर केंद्रित कहानियों का संग्रह है तथा “हाल-चाल” कविता संग्रह है जिसमें सामाजिक विषय , संदर्भ ,सामाज दर्शन,आदि विषय है | अष्टसई गंभीर विषय से संबंधित होने के कारण उसमें अनेक मूल्य परक विषय स्वत:उपस्थित हो गये हैं| हिन्दी दोहों से समन्वित इसमें अनेक सांस्कृतिक विषय हैं जिसमें बाल हट के विषय पर भी लिखते हैं - बालक का बाल रुदन है रुदन रिझावत लोक| रुदन बाद किलकत शिशु किलक हरत बहु शोक|| अहंकार को वे बहुत बड़ा दोष मानते थे |इसलिए गर्व न करने का परामर्श देते हुए लिखते हैं-सदा डरो न गर्व से गर्व बनावत खर्व| गर्व किया रावण बली नाश किया खुद सर्व || कलयुग में मनुष्य के सत्य भाषण के विषय में कहते हैं -कलयुग के संसार में नहीं कहत जन सत्य |भारी पलड़ा देखकर उसका बनत अपत्य||विनय मनुष्य का भूषण है ,बिना शील का मनुष्य बंदनीय, पूजनीय नहीं होता है | विनय के विषय में भी लिखते हैं - विनय वसत उर जिसके बनता वही महान |पानी गिरत जमीन पर सिर पर है सम्मान|| भारत की पहचान के विषय में उनका मानना था कि भारत का जो पहचान है वह जन-जन का सम्मान है |उच्च नीच की भावना से रहित ही भारत की पहचान है |इस विषय में वे कहते हैं -जन-जन का सम्मान ही भारत की पहचान |इसके कारण जगतगुरु समझो हिंदुस्तान || मनुष्य का जीवन दर्पण की तरह साफ होना चाहिए, निर्मल होना चाहिए|इस विषय में वे लिखते हैं-निर्मल हृदय विवेक संग चलता जो संसार| सुखी और संपन्न रह करता अटल प्रसार || इन दोहों में पथ प्रदर्शन की शक्ति है |जीवन की कठिन सच्चाइयों का ये दोहा बयां करते हैं |इस प्रकार हम देखते हैं कि डॉ.महेश सिंह यादव बहु प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे | वे जीवन की विषमताओं लडने वाले,कर्म की पूजा करने वाले थे |सदैव धैर्य धारण करने वाले तथा अनवरत साहित्य सृजन में संलग्न रहते थे| लेकिन साहित्य का यह महारथी जीवन की समस्याओं से न हार मानाने वाला ,जीवन की सच्चाई को परखने वाला एक दिन अचानक 3 जनवरी 2023 को अपनी प्रिय साहित्य की समर भूमि और जीवन भूमि को छोड़कर हमेशा के लिए आकाश मंडल के नक्षत्रों में शामिल हो गए | ऐसे मह मनीषी का जीवन भक्ति साहित्य और मानव मूल्य के प्रतीक के रूप में दृष्टिगोचर होता है |आपके प्रथम पुण्यतिथि पर हम अपनी ओर से आपको भावांजलि अर्पित करते हैं |

Sunday, 23 April 2023

https://dhsgsu.irins.org/faculty/index/Department+of+Sanskrit

डॉ अम्बेडकर:संस्कृत भाषा और साहित्य डा.अम्बेडकर : संस्कृत भाषा और साहित्य भारत महापुरुषों का देश है | यहाँ पर मानव क्या ईश्वर भी अवतरित हुए हैं ,राम और कृष्ण को हमारी परम्परा में ईश्वर माना जाता है |इसी तरह चाणक्य ,चन्द्रगुप्त , महाराणा प्रताप ,गुरुगोविन्द सिंह , महात्मा गांधी, डा.भीमराव अम्बेडकर , सुभाषचन्द्र बोस सरदार बल्लभभाई पटेल बालगंगाधर तिलक आदि लोकनायक महापुरुष भी अवतरित हुए हैं जिनके पराक्रम ,पौरुष .त्याग और समर्पण से राष्ट्र का मस्तक सदैव गौरवान्वित होता रहता है |ऐसे ही महापुरुष डा.भीमराव अम्बेडकर भी हैं ,जिन्हें राष्ट्रीय प्रतीक पुरुष के रूप में जाना जाता है | डा.भीमराव अम्बेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि सम्पन्न और अधिकार के प्रति सदा सचेत रहने वाले महामानव थे |भारतीय समाज एवं संस्कृति की गंभीर समझ उन्हें युवावस्था में ही प्राप्त हो गयी थी |उन्हें राष्ट्र और राष्ट्रीय समस्याओं की बहुत चिंता थी |जिसके समाधान के लिए वे सर्व प्रथम अध्ययन किये ,उनका मानना था कि अध्ययन ही सभी समस्याओं के निराकण का साधन है | डा.भीमराव अम्बेडकर आजीवन सबके लिए शिक्षा को अनिवार्य मानते थे | वे कहते थे कि शिक्षा सबको सर्व सुलभ होनी चाहिए | डा.भीमराव अम्बेडकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनेता एवं सुधारवादी चिन्तक के साथ - साथ वैश्विक समस्याओं के समाधान के प्रति प्रयत्नशील रहने वाले व्यक्ति थे | डा.भीमराव अम्बेडकर के मन में भारत की दुर्दशा, बेरोजगारी ,स्वास्थ्य ,पर्यावरण और संस्कृति के उन्नयन की बेजोड़ कमाना थी | उनके प्रयास से देश में ऐसी राष्ट्रीय भावना जागृत हुई जिससे भारत को समानता की दृष्टी मिली, वे देश से ऊच – नीच की भवना को समाप्त करना चाहते थे | क्या स्त्री, क्या पुरुष , क्या दलित , क्या पिछड़ा और क्या सबर्ण सभी तो ईश्वर की अप्रतीम रचना है | सबका आदर – सम्मान ,समान व्यावहार और सबके शिक्षा के अधिकार की वे सदैव वकालत करते थे |उनका मानना था प्रत्येक व्यक्ति या राष्ट्र का विकास बिना भेद – भाव के वातावरण से ही संभव है | वैदिक काल इस दृष्टी से स्मरणीय है वहां वेदान्त के प्रभाव से सभी मानव के प्रति समुचित व्यावहार दिखलाई पड़ता है | हाँ स्मृति काल सामाजिक दृष्टी से ठीक नहीं था| अम्बेडकर मनुष्य जीवन के लिए स्वतंत्रता के बड़े हिमायती थे | उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता उसका अधिकार है |किसी के लिए भी दासता या परतंत्रता अभिशाप है| मनुष्य के व्यक्तित्त्व का सम्पूर्ण विकास स्वतंत्रता में ही संभव है | डा.भीमराव अम्बेडकर को प्राचीन भाषा साहित्य से विशेष लगाव था | जिसमें संस्कृत मुख्य है | इसका भाषा सौष्ठव और व्याकरणिक प्रयोग विश्व के लिए उपादेय है | संस्कृत भारतीय संस्कृति की उत्स भूमि है | संस्कृत के वर्ण- वर्ण में भारतीय संस्कृति का कण- कण समाहित है | विशेष रूप से यदि वैदिक साहित्य को देखा जाय तो वहाँ जो वेदांत की दृष्टी अपनाई गयी है वह सराहनीय है |जिसमें जीव मात्र के प्रति जो ईश्वर का भाव दिखलाया गया है वह विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है |यहाँ एक बात और समझने की आवश्यकता है कि जिन स्मृति काल की कुरूतियों और परम्पराओं का डा. अम्बेडकर खण्डन करते हैं तो उन्हें विना पढ़ें और समझे नहीं करते हैं बल्कि तार्किक रूप से करते हैं | उनका तर्क अवश्घोष की तरह है | अश्घोष भी अपने बज्रसूची अनेक तथ्यहीन विषयों को उपस्थित करते हैं और आज के समाज के लिए उन विषयों का निराकरण करते हैं | डा. अम्बेडकर को संस्कृत का गहरा अध्ययन बोध था | वे भाषा के रूप में संस्कृत को बढ़ाना चाहते थे जिसका कारण मैं यह मनता हूँ कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो उत्तर से लेकर दक्षिण तक के सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाधने का सामर्थ्य रखती है | वे संस्कृत को भाषा के रूप में सबसे अधिक स्वीकार करते थे |जिसका प्रमाण संस्कृत आयोग के प्रतिवेदन 1956-57 के दशवें अध्याय के पैरा न. छ:से मिलता है कि डा.अम्बेडकर संस्कृत को राजभाषा बनाने का समर्थन किये थे | डा.अम्बेडकर अपने भाषणों में भी संस्कृत का समर्थन करते थे | जब वे कानून मंत्री थे तब भी अपनी बात संस्कृत भाषा के पक्ष में ही रखी थी | डा. अम्बेडकर संस्कृत को जानते भी थे और बोलते भी थे |बताया जाता है कि संविधान सभा में राजभाषा के सम्बन्ध में बात- चीत चल रही थी तब डा. अम्बेडकर और प.लक्ष्मीकांत मैत्रा परस्पर संस्कृत में ही वार्तालाप कर रहे थे, जिसके विषय में तत्कालीन समाचार पत्र आज ने लिखा भी था | एक बार कि बात है इंडियन शिड्यूल फेडरेशन की अखिल भारतीय कार्यकारी समिति का सेमिनार आयोजित था | जिसमें अम्बेडकर ने राजभाषा के रूप में संस्कृत के प्रस्ताव को लाने का श्लाघनीय प्रयास किया था लेकिन श्री बी.पी. मौर्या आदि के विरोध के कारण इस प्रस्ताव को उन्हें वापस लेना पड़ा. | लेकिन सितम्बर 1949 में अनेक प्रयास के बाद संस्कृत को भी आठवीं अनुसूची सम्मिलित कर लिया गया | डा. अम्बेडकर एक बड़े लेखक भी थे उनके द्वारा अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओँ में ग्रन्थ लिखे गए हैं | उनके मूल्य , जीवन- दर्शन ,आदर्श ,स्वतंत्रता आन्दोलन आदि के कार्य को , इतिहास आलोचना आदि के ग्रंथों के साथ साथ साहित्य में भी साहित्यकारों ने गढ़ना प्रारम्भ कर दिया | जिसमे संस्कृत भी बढ़- चढ़कर सहगामी बनी क्योंकि संस्कृत का इतिहास साक्षी है |उसका तो ध्येय ही आदर्श चरित निर्माण है |उसी की पूर्ति में राम , कृष्ण, भीष्म ,सीता ,कुंती ,द्रोपदी चन्द्रगुप्त,गांधी, सुभाष आदि के साथ डा. अम्बेडकर जैसे महनीय व्यक्तित्व से आधुनिक संस्कृत आलोकित है |आधुनिक संस्कृत कवियों के द्वारा काव्य ,महाकाव्य , खंड काव्य आदि के रूप डा. अम्बेडकर का चरित प्रकाशित है |आधुनिक संस्कृत कवि समवाय का एक बड़ा वर्ग या तो अम्बेडकर चरित को आदि से अंत तक प्रस्तुत किया है या तो उनके सिद्धांत छुआ – छूत ,ऊच- नीच ,शिक्षा ,अधिकार, समता , अहिंसा आदि को सामाजिक धरातल पर उकेरा गया है| संस्कृत साहित्य में चरित लेखन की परंपरा महर्षि बाल्मिकीय प्रणीत रामायण से ही हो जाती है |उन्होंने आदर्श चरित के रूप में राम चरित को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया |इसी रूप में भारतीय समाज को उन्नतिशील बनाने और स्वतंत्रता तथा उनमे राष्ट्रीय भावना को जागृत करने के लिए आधुनिक संस्कृत साहित्यमें डा. भीमराव अम्बेडकर के जीवन चरित आधारित साहित्य की सर्जना भी की गयी है | इस तरह यदि काव्यों की बात की जाय तो डा. भीमराव अम्बेडकर से सम्बंधित अम्बेडकर दर्शनम् महाकाव्य - बलदेव सिंह मेहरा द्वारा लिखा गया है | इसी तरह भीमायनम् महाकाव्य –प्रभा शंकर जोशी , राष्ट्रनायक: अम्बेडकर: -चन्द्र शेखर भंडारी ,भीमाम्बेडकर शतकम्-शांति भिक्षुक शास्त्री जिसका संपादन कार्य डा. प्रिय सेन सिंह के द्वारा किया गया है | अम्बेडकर दर्शनम् महाकाव्य सत्रह सर्गों में विभाजित है जिसमे अम्बेडकर के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त जीवन चरित को उपस्थित किया गया है | सभी सर्ग अनुष्टुप छंद में अनुस्युत है |भाषा सहज एवं सरल है | भीमायनम् महाकाव्य भीमराव अम्बेडकर के विराट फलक पर लिखा गया जीवन चरित है | इसमें अम्बेडकर के संघर्ष ,निष्ठा , द्वंद्व एवं चिन्तन के साथ जीवन के अन्तिम पड़ाव तक के विविध विषयों को प्रस्तुत किया गया है | इक्कीस सर्गों में निबद्ध यह महाकाव्य जोशी जी के तन्मयी भाव को व्यक्त करता है | ऐतिहासिक दृष्टी से यह काव्य जितना प्रमाणिक है उतना ही काव्य कला तथा भाषा – शैली से सुन्दर एवं आकर्षक भी है | भीमाम्बेडकर शतकम् में ललित और सुन्दर सौ श्लोकों में सर्जन किया गया है जिसका प्रारम्भ भगवान बुद्ध वन्दना से की गयी है – सरस्यां पंकजं प्राप्य गुंजन्ति भ्रमरा भृशम् | जगत्यां सृजन लब्ध्वा हर्ष तन्वन्ति मानवा: || भीमाम्बेडकरशतकम्-१अर्थात् तालाबों में कमलों को पाकर भौरें बहुत गुंजन करते हैं | दुनियां में भले लोगों को पाकर उत्तम कोटि के मनुष्य हर्ष का विस्तार करते हैं | इसमें अम्बेडकर से जुड़े अनेक प्रसंगों को भी उपस्थित किया गया है | उनके पारिवारिक जीवन से लेकर सामाजिक जीवन तक को विस्तार के साथ बताया गया है | इसमे एक स्थल पर कहा गया है कि अम्बेडकर संस्कृत नहीं पढ़ें थे(भीमाम्बेडकरशतकम्-२८) |इस तरह आधुनिक संस्कृत सहित डा. अम्बेडकर के जीवन दर्शन को केवल साथ लेकर चलने वाला साहित्य नहीं है बल्कि उसे आत्मसात करने वाला साहित्य है | आधुनिक संस्कृत साहित्य के कवियों के द्वारा डा. अम्बेडकर को समाज सुधारक , राष्ट्र उन्नायक ,स्वतंत्रता सेनानी ,सामाजिक चिंतक महामानव के रूप में चित्रित किया गया है जिनका आदर्श और व्यक्तित्व सभी मानव के लिय अनुकरणीय और कठिन समय में प्रेरणा प्रदान करने वाला है |

Monday, 14 November 2022

भारतवाणी

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