Tuesday, 16 November 2021

आधुनिक संस्कृत और भारतीय ज्ञान परम्परा के संवाहक प्रभुनाथ द्विवेदी

आधुनिक संस्कृत और भारतीय ज्ञान परम्परा के संवाहक प्रभुनाथ द्विवेदी (पूण्यस्मरण ) डा .संजय कुमार सहायक आचार्य –संस्कृत विभाग डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर ,म प्र .470003 मो. न. 8989713997 Email-drkumarsanjaybhu@gmail.com आधुनिक संस्कृत के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित आचार्य प्रभुनाथ द्विवेदी का जन्म २५ अगस्त १९४७ ई.को मीरजापुर ,उत्तर प्रदेश के भैसा (कछवा) ग्राम में हुआ था |इनके पिता का नाम श्री नन्दकिशोर द्विवेदी तथा माता का नाम श्रीमति रामकुमारी देवी था | बचपन से ही द्विवेदी जी का विशेष लगाव संस्कृत भाषा साहित्य से था| जिसके कारण स्नातक विज्ञान विषय से उत्तीर्ण होने के बाद भी इन्होने संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर और पी–एच .डी .की उपाधि प्राप्त कर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी, उ.प्र. में जनवरी १९७८ सहायक आचार्य के पद पर न्यूक्त हो गए , यहीं सह आचार्य एवं आचार्य पद पर रहते हुए संकायाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद का निर्वाह करते हुए जून २०१० ई. में सेवा निवृत्त हो गए लेकिन उनके ह्दय में विराजमान अध्यापकत्व उन्हें कभी भी सेवा निवृत्त नहीं होने दिया फलस्वरूप वे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ,वाराणसी , शंकरशिक्षायतन , नई दिल्ली , विश्वभारती, शान्तिनिकेतन (प.ब.),कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ,कुरुक्षेत्र एवं रानी पद्मावतीतारायोगतंत्र आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, शिवपुर ,वाराणसी में मानद आचार्य के रूप में अध्यापन करते रहे | द्विवेदी जी के अध्यापन के सामान ही लेखन कार्य भी महत्त्वपूर्ण है | उन्होंने कथासंग्रह के रूप में श्वेतदुर्वा , कथाकमौदी ,अंतर ध्वनि ,कनकलोचन,शालिवीथी आदि के साथ लगभग ६० ग्रंथों का प्रणयन किया है |इन्होने रामानन्दचरित एक संस्कृत भाषा में उपन्यास लिखा है | इस कोरोना महामारी पर भी इनके द्वारा कोरोनशतकम काव्य लिखा गया है |जिसमे १०८ श्लोक है |यह काव्य विषेश रूप से कोरोना से बचाव तथा वैश्विक परिदृश्य के साथ ही राजनीतिक दृष्य को भी उपस्थित करता है | २०१८ ई .में इनके द्वारा स्वच्छ्ताशतकम काव्य की रचना की गयी जिसमे सम्पूर्ण भारत को स्वच्छ रखने की कमना की गयी है |प्रभुनाथ द्विवेदी अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकर थे |इन्होंने अभी- अभी सनातन धर्म पर एक ग्रन्थ लिखा है |अलंकारोदारणम यह ग्रन्थ वस्तुतः किसी अंग्रेजी ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद है | इनके द्वारा इसके अतरिक्त २२९ शोध निबन्ध ,२४५ ललित निबन्ध भी द्विवेदी जी के प्रकाशित हैं | प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी जी के अध्यवसाय का यह प्रमाण है कि उनके निर्देशन में ३६ शोधार्थी शोध उपाधि प्राप्त किये हैं | द्विवेदी जी के आकशवाणी और दूरदर्शन पर ९१ प्रसारण कार्यक्रम भी हुए हैं |इनके कृतित्त्व और व्यक्तित्व पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोधकार्य भी चल रहा है | डा.प्रभुनाथ द्विवेदी के साहित्यिक अवदान पर विभिन्न संस्थाओं से ३४ पुरस्कार दिए गये है जिनमे राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१७ ) साहित्य अकादमी पुरस्कार (२०१४ ) बाल्मिकीय पुरस्कार , बाणभट्ट पुरस्कार ,कालिदास पुरस्कार ,श्रीरामानंदचार्य पुरस्कार मुख्य हैं |प्रो.द्विवेदी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी , विद्वान, महामनीषी थे |विषम परिस्थिति में कभी भी विचलित नहीं होते थे,ह्दय रोग से पीड़ित होने पर भी सतत अपने लेखन कार्य से भारतीय ज्ञान परंपरा को सुगम और सुबोध बनाने का प्रयत्न करते रहे | लेकिन दाम्पत्य जीवन के घनीभूत प्रेम अनुरागी पत्नी श्रीमति निर्मला देवी के स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण ईधर कुछ दिनों से हतास और निराश हो गए थे जिसके कारण अचानक मस्तिष्क में विकार उतपन्न हुआ और लाख चिकित्सीय प्रयास करने पर भी १५ नवम्बर ,२०२१ को मध्य रात्रि में अपने नश्वर शारीर कि छोड़कर शिवसायुज्य के लिए अनन्त पथ के गामी हो गए | संस्कृत के ऐसे महामनीषी के देव लोक गमन पर हम अपनी पूत ह्दय भावांजलि अर्पित करते हैं |

1 comment:

  1. अतिशोभनम् आचार्य सारगर्भित लेख 💐💐प्रो.द्विवेदी श्री को भावपूर्ण श्रंद्धाजलि😢

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