Friday 22 July 2022

बालगंगाधर तिलक की राष्टवादी पत्रकारिता


                                                  (जयंती विशेष)

                             डॉ. सञ्जय कुमार
                           संस्कृत विभाग, डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर ,( म.प्र.)
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                                                   भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राष्ट्रवाद के जनक बालगंगाधर तिलक का जन्म  23 जुलाई 1856  ईस्वी में  हुआ था |  इनके पिता का नाम श्री गंगाधरपंत था तथा जो एक  मराठी पाठशाला में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थे| बालगंगाधर तिलक को  जीवन की थाती  पिता से ही प्राप्त हुई थी | उन्हीं से  प्रेरणा प्राप्त करके बालगंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता, भारतीय संस्कृति,अशिक्षा , गरीबी  और भारतीय दुर्दशा आदि समस्याओं पर विचार करते थे एवं समाधान का चिंतन करते थे |वे ऐसे देश की कल्पना करते थे जो स्वतंत्र हो ,जहाँ के लोग अपने मन के अनुसार कार्य कर सके और मन की बात कर सके |  मनुष्य स्वतंत्र जन्म लिया है इसलिए स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जीने का वह अधिकारी है | इसी  लिए उन्होंने एक नारा दिया - स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है |यह नारा इतना लोकप्रिय  हुआ कि प्रत्येक भारतवासी इस नारे पर कुर्बान होने के लिए तत्पर हो गया | स्वतंत्रता की चाहत और बढ़ने लगी |बच्चे ,बूढ़े ,जवान सबमें स्वतंत्रता भूख  अग्नि के समान बढ़ने लगी और देश स्वतंत्रता के लिए अति उत्साहित हो गया | जब बालगंगाधर तिलक इस धरा –धाम जब  पर अवतरित हुए तब भारत अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा था | देश की विषम अवस्था जग जाहिर थी |लोग हताश –निराश थे |आशा की एक किरण भी दूर –दूर तक नजर नहीं आ रही थी |लेकिन माँ भारतीके कोख से उस समय  ऐसे अनेक रत्नों ने जन्म लिये जिन्मे बालगंगाधर तिलक एक थे |  
         उस समय  अशिक्षा, बेरोजगारी अपनी चरम पर थी और इससे भी कष्टकर थी   अंग्रेजों की परतंत्रता , जो प्रत्येक भारतीय के लिए अभिशाप बन गयी थी |  परतंत्रता मनुष्य की के लिए कलंक  के समान होती है|यह जीवन को निरुपाय बना देती है | जरा विचार कीजिए कि जब आप अपने मन की बात किसी से न कर सकते और न वह कर सकते हैं जिसे आपकी चेतना करना चाहती है| तो आप उस समय  स्वयं को कितना विवश और असहाय समझेगें | इस विकट समस्या से बालगंगाधर तिलक  देश को मुक्त करना चाहते थे | जिसके लिए वे  सबसे बड़ा अस्त्र शिक्षा और पत्रकारिता को मानते थे | वे ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जिससे भारत की आर्थिक दशा में सुधार हो और देश अंग्रेजों के शासन से मुक्त हो सके | आधुनिक शिक्षा को बालगंगाधर तिलक इसलिए अनिवार्य मानते थे क्योंकि अंग्रेजों का सामना बिना आधुनिक शिक्षा या भाषा को जाने संभव नहीं था | आधुनिक शिक्षा के द्वारा ही भारतीय समाज के पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है| जिसके लिए  वे 2 जनवरी 1880 में आगरकर और विष्णुशास्त्री  चिपलूणकर की सहायता से एक न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना किए| इस स्कूल में शिक्षक के रूप में महादेव जोशी और शिवराम आप्टे भी कार्यरत थे | शिवराम आप्टे संस्कृत के बड़े विद्वान अध्यापक थे |उन्होंने संस्कृत ,हिंदी, अंग्रेजी के अनेक  कोशों का निर्माण किया है   |
         बालगंगाधर तिलक शिक्षा के लिए पूरे भारत को आवाहन करते हुए किसी सभा में कहा था कि साथियों ! हमारा देश शिक्षा के अभाव में पिछड़े देशों में गिना जाता है| यही कारण है कि अंग्रेज भारत की जनता का शोषण कर रहे हैं| उन्हें गुलाम बनाकर रखें हैं | ऐसे में हर भारतवासी को शिक्षा प्राप्त करने की जरूरत है | इसके लिए हमने एक स्कूल का श्रीगणेश भी किया है |  इस स्कूल में भारत के सभी लोग आ सकते हैं ,यहां सभी को भारत की आधुनिक शिक्षा से अवगत कराया जायेगा | जिससे देश की जनता को बाहर की दुनिया का ज्ञान भी होगा | सभी  अपने देश की दशा को समझे , समाज की दशा को समझे| इससे उनके  व्यक्तित्व का  विकास होगा |अतः  मेरी आप सभी से प्रार्थना है कि आप हमारे स्कूल में आकर आधुनिक शिक्षा प्राप्त करें| बालगंगाधर तिलक कुप्रथा के रूप में बालविवाह, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा,  विधवा दुर्दशा आदि का कारण अशिक्षा को ही मानते थे | इस तरह शिक्षा के द्वारा अपने देश को हर प्रकार से  स्वतंत्र और सशक्त बनाने का दृढ़ निश्चय बाल गंगाधर तिलक के मानस  में विद्यमान था |एक बात और महत्वपूर्ण है कि वे  शिक्षा को आय के साधन के रूप में नहीं मानते थे यही कारण था कि स्वयं स्थापित किया हुआ स्कूल जब डेक्कन एजुकेशन सोसायटी के अंतर्गत आ गया और सोसायटी द्वारा निरन्तर पैसे को लेकर तनाव बढने  लगा तो इन्होंने सोसायटी और स्कूल दोनों इस्तीफा दे दिया |  
        स्वतंत्रता के लिए  दूसरा  अस्त्र वे  पत्रकारिता को मानते थे | पत्रकारिता किसी समस्या को समाज के सामने बड़े प्रभावकारी  रूप से केवल  उपस्थित ही नहीं करती है बल्कि  उस समस्या से समाज को अवगत कराती हुई उसके समाधान का मार्गप्रशस्त करती है |इसलिए उन्होंने मराठी में केसरी  और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी प्रारम्भ  किया था| इन दोनों समाचारपत्रों से लोगों में राजनीतिक चेतना का गहरा प्रभाव  राष्ट्रीय स्तर पर पड़ा | स्वतंत्रता किसी देश के लिए क्यों आवश्यक है और अंग्रेजी सरकार भारत  के प्रति अपना क्या दृष्टिकोण रखते हैं एवं उनकी उपभोगवादी नीति को सबके सामने लाने में इन समाचारपत्रों की भूमिका अग्रणी थी  | बालगंगाधर तिलक का मानना था कि जब – तक अंग्रेजों का भारतीय जनता के प्रति  विचार और दृष्टिकोण सम्पूर्ण जन-मानस तक नहीं पहुचेगा तबतक स्वतंत्रता का संघर्ष राष्ट्र व्यापी नहीं बान सकेगा |पत्रकारिता ही देश और समाज को संरक्षण – संबर्धन प्रदान करने की सशक्त स्थली है | इस पत्रकारिता को जितने ईमानदारी और कर्मठता से संचालित किया जायेगा देश उतना ही सशक्त और उन्नतशील बनेगा | उन्हें अध्यात्म से बड़ा लगाव था जिसके पूर्ति के लिए वे निरंतर श्रीमद्भागवद्गीता का अध्ययन करते थे, परिणामत: उन्होंने गीतारहस्य का प्रणयन किया |जिसमें बालगंगाधर तिलक ने बताया है कि   मानवता का  नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना ही  श्रीमद्भागवद्गीता का सन्देश है | श्रीमद्भागवद्गीता  मनुष्य को संसार से कभी विमुख होने की प्रेरणा नहीं देती बल्कि निष्काम कर्म का प्रतिपादन करती है| देश सेवा का गुरुभार निष्काम कर्मयोगी के द्वारा ही संभव है | बालगंगाधर तिलक वास्तव में भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रति बहुत निष्ठा भी रखते थे |उन्होंने वेदों में आर्कटिक होम नामक एक ग्रन्थ भी लिखा है जिसमें वेदों के कालखंड के सम्बन्ध में गंभीर विवेचना की गयी है | बालगंगाधर तिलक भारतीय जनता को एक  सूत्र में बाधना चाहते थे | जीवन की सुघरता समूह  में ही निखरती है| इसलिए  गणेश उत्सव और शिवाजी दिवस का आयोजन उनके द्वारा किया जाता था | बालगंगाधर तिलक का मानना था कि  इस भूमि पर जो लोग पैदा हुएं हैं ,जो लोग  यहाँ रहते हैं उन सब का कर्तव्य है कि इस भूमि के संरक्षण –संबर्धन में अपना योगदान दें | बालगंगाधर तिलक के व्यक्तित्व कृतित्व पर आधारित अनेक भाषाओं में काव्य रचनाएं  भी की गई है  जिसमें संस्कृत भाषा का भी  नाम आता है| माधवहरी अणे द्वारा तिलकयशोर्णव: नामक वृहद् महाकाव्य की रचना की गयी है| माधवहरी अणे के  बालगंगाधर तिलक राजनीतिक गुरु थे| तिलक की प्रेरणा से वे  स्वतंत्रता संग्राम के प्रहरी बने | इसलिए उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होकर  तिलक की राष्ट्रभक्तिमय   व्यक्तित्व इस महाकाव्य में प्रदान किया  है| तिलक गाथा के दूसरे बड़े संस्कृत कवि अप्पाशास्त्री राशिवडेकर का नाम आता है |  उनके द्वारा  तिलकमहाशयस्य कारागृहनिवास: नामक गीतिकाव्य लिखा गया है| इसमें अनेक पद्यों द्वारा  तिलक  के स्वतंत्रता संघर्ष और मांडले जेल की कार्यशैली को रेखांकित किया गया है |
   बालगंगाधर तिलक एक राष्ट्र प्रहरी के समान अडिग रूप राष्ट्र सेवा में तत्पर रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे | वे कभी परिस्थिति से निराश होने वाले नहीं थे | उन्होंने  सदैव राष्ट्र सेवा को आगे रखा | पारिवारिक जीवन राष्ट्र सेवा में कभी बाधक नहीं अपितु साधक ही रहा |बालगंगाधर तिलक निरंतर अंग्रेजी सरकार की गलत  नीतियों का विरोध करते रहे | उनके फूट डालो और राज्य करो को कभी भी सफल नहीं होने दिए | उनके द्वारा होमरूल लीग की स्थापना की गयी |बताया जाता है कि 1915 ई.में पुणे में राष्ट्रवादियों का एक सम्मलेन आयोजित किया गया  था | जिसका आयोजन तिलक ने अपने साथियों के सहयोग से किया था | सम्मलेन में उन्होंने राष्ट्रवादी आन्दोलन के लिए लोगों से आवाहन किया तथा यह भी कहा कि अब देश में  होमरूल लाने की आवश्यकता है  |किन्तु नरमपंथियों द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध किया गया लेकिन कुछ मतभेदों के साथ अन्तत:1916  ई.में होमरूल लीग की स्थापना हो गयी |जिसका उद्देश्य अंग्रेजी सरकार से वैधानिक रूप से स्वशासन ग्रहण करना था | इसके संस्थापक बालगंगाधर तिलक थे लेकिन उन्होंने इससे सम्बंधित किसी पद को स्वीकार नहीं किया था |
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2 comments:

  1. स्वतंत्रता सेनानी के प्रति मेरे मन में अलग भाव रहता है

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