Wednesday 13 July 2022

कोरोना काल में जीवन रक्षक योग

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस विशेष 
      कोरोना काल में जीवनरक्षक योग
                  
                   डॉ.सञ्जय कुमार
                    सहायक आचार्य
 संस्कृत विभाग, डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,
सागर ,म.प्र.
                                                                    drkumarsanjaybhu@gmail.com
                                                                  Mo.No.8989713997

योग हमारे जीवन का महामूल्य है। इससे पंचभूतात्मक शरीर और मन स्वस्थ रहता है।यह मनुष्य जीवन को सुवर्धित करता है तथा चिर सजग प्रहरी के भांति मनुष्य की रक्षा करता है। उसके रोम-रोम को पुलकित करता है और जीवन आयु को आगे बढ़ाता है।साथ ही स्वस्थ चिन्तन - मनन की प्रक्रिया विकसित कर यथार्थ का बोध कराता है। यही बोधात्मक प्रक्रिया उसे दर्शन की श्रेणी में प्रतिष्ठित करती है। इसलिए मनुष्य जीवन के लिए योग का अत्यधिक महत्व है। मनुष्य को अपने जीवन शैली में योग को उसी प्रकार उतारना चाहिए जिस प्रकार वह नियमित रूप से भोजन और जल को ग्रहण करता है। आज योग को जीवनचर्या का अंग बनाने की आवश्यकता है। वैसे तो योग का निर्देश वैदिक युग से ही प्राप्त होता है। लेकिन उसको व्यावहारिकता प्रदान करने वाले महर्षि पतञ्जलि ही हैं। उन्होंने परम्परागत रूप से प्राप्त योग को स्वयं धारण किया तत्पश्चात् उसे लोक कल्याण की दृष्टि से योगसूत्र के रूप में प्रतिष्ठित किया।वे योग के विषय में कहते हैं-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।(योगसूत्र 1/2) अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध योग है।चित्त का चांचल्य स्वभाव है। फलस्वरूप चित्त विषयों की ओर दौड़ता है।जिसके निरोध (रोकने)के दो उपाय हैं-वैराग्य और अभ्यास। सभी प्रकार की इच्छाओं से विरक्तभाव वैराग्य है और चित्त को स्थिर करने के लिए योग साधनों का अनुष्ठान रूप प्रयत्न करना अभ्यास है।योग के साधन हैं-यम, नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,और समाधि। यही योग के आठ अंग कहे जाते हैं।वितर्क जन्य बाधाओं से रहित होकर इनका निरन्तर अनुष्ठान करने से योगाभ्यासी को लौकिक एवं पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है।
  यह योग ही सभी कार्यों का मूल है। इसलिए कहा गया है-यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन।स धीनां योगमिन्वति। ऋग्वेद-( 1/18/7) अर्थात् योग के विना विद्वान का कोई यज्ञकर्म (शुभ कर्म) सिद्ध नहीं होता है। योग ही मनुष्य के सम्पूर्ण कामनाओं का भी मूल है। इससे हमारा शरीर और मन पुष्ट होता है। मनुष्य अपना सब कार्य मन और शरीर के द्वारा ही करता है।मन और शरीर की स्थिरता ही योग का महात्म्य है। यही हमारे स्वास्थ्य का नियामक भी है। अतः योग के सम्बन्ध में महाभारत में ठीक ही कहा गया है-न तु योगमृते शक्या प्राप्तुं सा परमा गति:।(महा.शांति.331/52) अर्थात् योग के विना परम महत्वशील कार्य सिद्ध नहीं होता है। योग के द्वारा ही मनुष्य अपनी कामनाओं को साकार रूप दे पाता है। इसके महात्म्य के सम्बन्ध में श्वेताश्वतरोपनिषद् में कहा गया है-पृथ्व्यप्तेजोऽनिलखे समुत्थिते पञ्चात्मके योगगुणे प्रवृत्ते।न तस्य रोग न जरा न मृत्यु:प्राप्तस्य योगग्निमयं शरीरम्।।(श्वेताश्वतरोपनिषद् 2/12)अर्थात् पृथ्वी,जल,तेज, वायु और /आकाश इन पांच महाभूतों का सम्यक प्रकार से उत्थान होने पर तथा इनसे सम्बन्ध रखने वाले पांच प्रकार के योग सम्बन्धी गुणों की सिद्धि हो जाने पर एवं योग निर्मित अग्निमय शरीर को प्राप्त कर लेने वाले साधक को न तो रोग होता है,न बुढ़ापा आता है और न अकाल मृत्यु ही होती है।जब पंचभुतात्मक शरीर पंच महाभूतों से तादात्म्य स्थापित करती है तो एक अलग प्रकार की तन्मय शक्ति का संचार होता है जो हमारे जीवन रेखा को केवल बढ़ाती ही नहीं है बल्कि शरीर को पुष्ट और सशक्त भी बनाती है।
  हमारा यह शरीर एक रथ के समान है।आत्मा इस रथ का अधिष्ठाता स्वामी है,बुद्धि इस रथ का सारथी है।मन घोड़ों के मुख में बंधी लगाम या रस्सी है,इन्द्रियां घोड़े हैं।इन सबका स्वामी योग है क्योंकि यह यथार्थ दर्शन के साथ सबका पोषण करता है।योग केवल दर्शन नहीं जीवन जीने की कला है। जिसके आगे-पीछे मानव कल्याण ही।जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र का सर्वविध कल्याण चाहता है उसी प्रकार यह योग है इसे जो अपने जीवन में अपनाते हैं उनका योग भी सर्वविध कल्याण ही करता है।यह सुख-दु:ख में समभाव रहने के लिए प्रेरित करता।मन में अवसाद को रूकने नहीं देता और कठिन से कठिन समय में विचलित भी नहीं होने देता है। इसलिए आज सबको घर -परिवार के साथ योग को अपनाने की जरूरत है।वायरस कोविड-19 से सुरक्षित रहने की दृष्टि से अपनी प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने के लिए योग सबसे सहज और सुरक्षित उपाय है।विशेषकर योगाङ्गों में आसन और प्राणायाम तो प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने की दृष्टि बहुत ही उपयुक्त हैं साथ ही आहार –विहार पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है| जो यम और नियम से सम्बंधित है | वस्तुत:यम और नियन हमारे आचरण और व्यवहार को परिष्कृत करते हैं जिससे सयंमित जीवन विकास होता है | सयंमित जीवन आज इस विषम परिस्थिति का समाधान है |त्यागपूर्वक जीवन जीने का उपदेश उपनिषदें भी देती हैं |  
   जैसे एक अच्छे काम में एक- एक करके लोग जुड़ते चले जाते हैं और कारवां बनता चला जाता है वैसे ही लोगों को योग से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए । सौभाग्य से योग को आज अंर्तराष्ट्रीय दिवस के रूप भी मान्यता मिल गई है जो प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव की बात है। योग जाति-धर्म से ऊपर उठकर मानव मात्र के लिए कल्याण का विधान करता है यह किसी में भेद नहीं अभेद का अनुशासन मानता है। इस धरा धाम के लोगों को अपना मानता है। सबको समान भाव से योग फल देता है।इसलिए सम्पूर्ण पृथ्वी के लोगों को योग से तादात्म्य स्थापित कर जीवेम शरद:शतम् की संकल्पना पूर्ण करनी चाहिए।

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